मंगलवार, 26 जून 2012


क्या सोचा था ,
और क्या हो गया,
क्या हमने कभी सोचा था,
कि  हमारे प्यार की परिणिति,
 यूँ आंसुओ में होगी,
किरिच-किरिच कर ,
टूट जायेंगे हमारे सपने,
दोष किसे दूँ ,
जानती हूँ कसूरवार मैं हूँ,
लेकिन क्या समझाने पर भी,
तुम समझ पाओगे ,
 कि  क्या थी मेरी मनोस्थिति ,
जब लिया था मैने ,
तुमसे अलग होने का  फैसला,
क्या समझ पाओगे तुम,
 मेरे अन्दर की उस रिक्तिता को,
उस खालीपन को ,
मेरी आत्मा की उस अतृप्तता  को,
जो रह गई  है,
तुम्हारे जाने के बाद।




जानते हो ,
तुम्हारे और मेरे प्यार का,
 वो एक पल ,
जब हम दोनो ने,
पहली बार एक दूसरे को,
 अपना माना  था ,
उतना ही सच्चा है ,
उतना ही सात्विक,
जितना भोर के समय,
किसी मंदिर में बजता शंख,
या किसी मासूम से बच्चे की पहली हंसी,
जिसमे कहीं कोई बनावट नहीं,
निश्छल और निष्पाप।
ये अलगाव ये दूरियां,
तो हमारी अपनी बनाई  हुई हैं,
सच्चा तो बस वो एहसास ही था,
जिसने बांध दिया था,
दो अजनबियों को,
एक अनजाने बंधन में,
जगाई  थी प्रेम की भावना ,
हमारे अंतर्मन में,
जो जलती रहेगी सदा ,
हमारे न चाहने पर भी हमारे मन में।


बुधवार, 13 जून 2012


चेहरे पर अजनबीपन के
मुखोटे लगा कर भी,
हम नहीं बन सकते अजनबी,
क्योंकि पहचान चुके हैं,
हम दोनों के मन एकदूसरे को,
और ये पहचान अब की नहीं ,
है बहुत पुरानी ,
तभी तो इतने सारे चेहरों की भीड़ में,
 मेरे मन को भाये तो बस तुम ,
जाने कितनी बार ,
पहले भी मिले होंगे हम यूँही ,
और शायद आगे भी मिलेंगे,
नए चेहरों के साथ,
चेहरों का क्या है,
चेहरे तो बदलते रहेंगे,
ये तो एक भ्रम है,
 सच  है तो बस केवल मन,
जो ढूंढ ही लेता है  तुमहे,
हर बार,चाहे  तुम
 लाख दीवारें  खडी  करो
अजनबीपन की,
लेकिन ढूंढ ही लेंगी मेरी आँखे तुम्हे
 हर बार ,हमेशा.





अक्सर महसूस करती हूँ मैं,
तुम्हारी खुशबू
अपने आस-पास ,
महक उठता है तन,
पुलकित हो जाता हैं मन,
उस परिचित सी सुगंध से ,
सिहर सी जाती हूँ मैं,
जब याद आता  है किसी का पहला स्पर्श ,
गर्मी का खुश्क  महीना भी
 जैसे बन जाता है ,
बारिश का सा मौसम ,
लगता है जैसे
चुरा लिया हो,
किसी ने मुझको मुझसे ही,
साधिकार किया हो प्यार,
दे दिया हो जीवन भर को
 स्मृतियों का उपहार।


तुम्हारी कोई भी चीज़
 गुम नहीं की है मैंने,
तुमसे जुडी हर याद  को मैंने,
संजो कर रख लिया है दिल में,
यहाँ तक की,
तुमसे अलग होने के बाद,
तुम्हारी याद में बिताये हुए,
हर पल को भी,
मेने सहेज कर रख लिया है,
कविताओ के रूप में,
क्योंकि तुम्हारी याद  भी तो,
तुम्हारी ही चीज़ है।






















वक़्त गुज़रता जा रहा है,
 यादें धुंधली होती जा रही हैं,
 दूरियां बढती  जा रही हैं,
 मुमकिन है यादो की  भीड़  में,
तुम भूल जाओ मेरा चेहरा भी,
में बन कर रह जाऊं ,एक धुंधली तस्वीर ,
मेरी आवाज तक तुम्हे याद  न रहे,
लेकिन वक़्त कितना भी गुज़र जाये,
कितनी भी दूरियाँ  आ जाये,
में नहीं भुला पाऊंगी तुम्हे,
तुम्हारे साथ बीता हर एक पल
 मुझे  ऐसे याद  है जैसे कल ही की बात हो,
तुम्हारी कही हुई  हर एक बात,
 मुझे आज भी याद  है ,
और आगे भी रहेगी
तुम्हे याद  रहे न रहे।









कैसे  कह दूं कि  ,
तुम मेरे पास नहीं हो,
जबकि दुःख के हर छण में,
मैंने  महसूस की है
 तुम्हारी उपस्थिति अपने पास,
अपने दिल के बहुत करीब,
कैसे कह दूं कि ,
 तुमने मेरा साथ नहीं दिया,
जबकि कितनी ही बार
अवचेतन रूप में,
तुमने पोंछे  हैं मेरे आंसू,
लगाया है मुझे गले,
कैसे कह दूं कि  भूल चुकी हूँ तुम्हे,
जबकि हर पल रहता है
तुम्हारा ही चेहरा,
 मेरी आँखों के आगे,
कैसे कह दूं कि  जी  लूंगी,
 मैं  तुम्हारे बिन,
जबकि तुम्हारे बिना जीने की
कल्पना तक नहीं की है,
 आज तक मैंने ,
कैसे कह दूं कि ,
 अलग अलग हैं,
 हम दोनों के जीवन,
जबकि तुम्हारे बिना,
  ये जीवन लगता है
 कितना अर्थ हीन ,
अधूरा सा,
कसे कह दूं कि  नहीं है,
 तुम्हारा इंतजार मुझे,
जबकि आज भी नहीं छोड़ा  है,
 मेरी आँखों ने ,
तुम्हे लेकर सपने देखना,
 भविष्य के।


जी चाहता है ,
कि  एक बार ,
जोर से हंस पडूँ  खुद पर,
आखिर क्यों यकीं हो चला था मुझे तुम पर,
और तुम्हारी बातों  पर,
 और सोचने लगी थी मैं,
 की अगर जिन्दगी में कभी ,
जलना पड़ा मुझे ग़मों की  धूप में,
तो भाग कर छुप  जाऊंगी तुम्हारे साये तले ,
और बचा लोगे तुम मुझे ,
ग़मों की तपिश से,
अपने प्यार की शीतलता देकर,
लेकिन कभी सोचा न था,
की मुझे गमो की धूप में जलता देखकर,
तुम छुप जाओगे कहीं जाकर,
और दूर से देखोगे मुझे ,
जलती हुई झुलसती हुई।


क्यों छीनते  हो खुद को,
क्यों दूर ले जा रहे हो,
अपने आपको मुझसे,
जबकि मृत्यु  तैयार  है हर पल,
अलग करने के लिए हमें,
एक दुसरे से,
सदा के लिए।


क्या ये वही आँखे हैं,
जिनमें नज़र आती  थी,
मेरे लिए कितनी चाहत ,
एक शोखी एक शरारत,
कुछ न कह कर भी,
जो कह देती थी बहुत कुछ,
जेहन की तह में उतर जाने वाली ,
वो दो गहरी और स्नेहिल आँखें,
इन दो जोड़ी आँखों का उठाना,
उठ कर मिलना,
मिल कर झुकना ही तो थी हमारी मौन भाषा,
फिर आज  जाने क्यों ये इतनी अजनबी हो गयी,
 शायद ये पहचान नहीं पा रही हैं  इन  आँखों को ,
 जिनमे  काजल की जगह ले ली  है आंसुओं ने,
लेकिन आंसुओं से धुल कर भी,
मिट नहीं पाई है, तुम्हारी तस्वीर,
इन आँखों से,
तुम  चाहे न करो सामना ,
लाख चुराओ नज़र,
लेकिन फिर भी ढूँढती  रहेंगी मेरी आँखें,
वही तुम्हारी प्यार भरी नज़र।


मंगलवार, 12 जून 2012

कुछ भावनाएं पसंद नहीं करती,
रिश्तो की चारदीवारी में रहना,
शब्दों से कहीं अधिक गहरी होती हैं ,
मुश्किल होता है उन्हें कोई नाम देना ,
गर कोशिश की भी जाये ,
उन्हें रिश्तो का जामा पहना कर,
कोई नाम देने की,
तो खो देती हैं वो अपनी खुशबू,
मुरझा जाती  हैं उन फूलों की तरह ,
असंभव हैं जिनका दुबारा खिलना।

आज तुम्हारे लिए बन कर रह गयी हूँ में,
बस एक अतीत,
एक बीता हुआ कल,
लेकिन शायद तुम्हे पता न हो,
की अब मेरे जीने का सहारा बन चुका है
वही बीता हुआ कल,
इतना जज़्ब हो  है मुझमें,
उसका हर एक पल,
कि  वही बन चुका  है,
 मेरा आज और आने वाला क ल,
वर्त्तमान में रह कर भी में खोयी रहती हूँ
 उसी अतीत में,
जीती रहती हूँ उन्ही लम्हों को बार बार ,
जो गुज़ारे थे तुम्हारे साथ,
  शायद मै  छोड़  आई हूँ खुद को
उसी पल में,
और अब ढूँढती रहती हूँ,
उस हर पल में,
अपनी और तुम्हारी परछाइयों को ,
सुनने की कोशिश करती हूँ,
उन प्यार भरी बातों  को,
भरने के लिए उस खालीपन को,
जो रह गया है,
तुम्हारे जाने के बाद।


दोष न तुम्हारा था न मेरा,
दोष तो था केवल मेरे मन का ,
जो तुम्हारे इतने पास आ कर भी
तुमसे दूर ही रहा ,
तुम्हारे साथ होने पर भी ,
खुद को अकेला महसूस करता रहा ,
शायद वो समझ नहीं पाया
तुम्हारी भाषा को,
या तुम नहीं समझ पाए मेरे मन की भाषा को ,
कहीं कुछ तो था अनुपस्थित  हमारे बीच,
शायद तुम्हारा मन,
जो दोड़ता रहा बहार की और,
और होता गया मुझसे दूर ,
काश तुम एक  बार बाहर की दुनिया
से मुड़  कर देखते
मेरे मन की दुनिया को,
जहाँ तुम पाते मुझे प्रतीक्षा करते हुए,
और फिर मिलते हम दोनों के मन ,
जो होता एक सार्थक मिलन,
शरीरों के मिलन से कहीं ऊँचा कहीं गहरा।





गर्मियों के खुश्क मौसम में,
तुम्हारी याद  बन कर आती  है,
बरसाती हवा का एक झोका ,
जो भर देता है मन को,
तुम्हारे प्यार की शीतलता से,
जैसे देता हो आश्वासन ,
छूकर मेरे माथे को,
कहता हो धीरे से,
अभी समय है प्रतीक्षा का,
माना  धूप है कड़ी,
पर दूर नहीं है वो दिन ,
जब आएँगी वर्षा की फुहारें ,
लेकर मेरे आगमन का सन्देश
तुम्हारे  देश।
जब भी तुमसे कुछ कहना चाहा ,
शब्द साथ न दे सके ,
गुम हो गयी भावनाएँ 
औपचारिकताओ के भंवर में,
और आज जब तुमसे कहने के लिए
कुछ भी नहीं है शेष,
तो वही शब्द जाने कहाँ से
लौट कर  आ जाते हैं,
गूंजते हैं मस्तिष्क  मैं,
छटपटाते हैं तुम्हारे पास आने को ,
और कह देने को
वो सब कुछ जो रह गया था अनकहा।